Because VALENTINE is also a type of VIRUS... (क्योंकि वेलेंटाइन भी एक प्रकार का वायरस ही है...)
लीजिए साहब, आ गया 14 फरवरी। पूरी दुनिया में कमाल का बवाल है इस दिन। पता नहीं कब से दुनिया में आया? कैसे आया? अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं और इस बारे में कोई ठोस तथ्यात्मक जानकारी भी उपलब्ध नहीं है। पर साहब, आया और ऐसा आया कि देखते ही देखते पूरी दुनिया के हर देश में बिना पासपोर्ट-वीजा के कोरोना की तरह घुस गया और करोड़ों लोगों को अपने पाश में ले लिया।
वैसे वेलेंटाइन डे और वायरस दोनों हुए तो नाम के लिहाज से एक ही राशि के और यदि बात की जाए तो गुण-दोष भी काफी कुछ समान हैं। वायरस में नाक बंद हो जाता है और वेलेंटाइन में आंख-कान बंद हो जाते हैं। आदमी को कुछ दिखता नहीं। वायरस में बुखार आता है, वेलेंटाइन में भी प्रेम का बुखार चढ़ता है कि बस उतरे ना उतरे। वारयस से सांस की तकलीफ होती है, वेलेंटाइन में भी प्रेमी आहें भरता है, घुट-घुटकर सांस लेता है। वारयस से थकान होती है, शरीर टूटता है, वेलेंटाइन में भी आदमी बस उठना नहीं चाहता। गम और मोहब्बत के गाने सुनता है। वायरस फटाफट फैलता है, वेलेंटाइन भी जो फैला है पिछले कुछ सालों में कि रुक ही नहीं रहा। वायरस से बचाव है कि मास्क पहनो, वेलेंटाइन से भी बचाव है कि भई, आंखों पर चश्मा चढ़ा लो और ऐसी चीजें देखो ही नहीं। वायरस से वैक्सीन बचाता है कि फिर हो जाए तो शरीर लड़ लेता है, वेलेंटाइन में भी समाज और परिवार की सीख का वैक्सीन काम करता है कि फिर से प्रेम का बुखार चढ़े तो शरीर और दिमाग लड़ ले।
वैसे प्रेम एक शाश्वत सत्य है, एक अद्भुत शब्द और भाव है। किंतु मेरी समझ में यह नहीं आता कि प्रेम हेतु कोई एक दिन कैसे निर्धारित हो सकता है? प्रेम तो एक सतत प्रक्रिया है। प्रेम है तो है। उसके लिए 14 फरवरी की प्रतीक्षा थोड़े ही करनी होती है। और प्रेम एक ऐसा अनंत थाह वाला भाव है कि उसे किसी युवक और युवती से जोड़ देने का उपक्रम बड़ा सतही और फूहड़ होगा। प्रेम तो प्रकृति के जर्रे-जर्रे से, हर शय से, हर चीज, हर मनोभाव से किया जा सकता है।
मैं जब देखता हूं हमारी पीढ़ी से पहले वाली पीढ़ी को तो उनके जीवन में "चॉकलेट डे" नहीं था पर संबंधों की मिठास थी। "प्रॉमिस डे" नहीं था किंतु एक-दूजे की हर इच्छा का ख्याल सर्वोपरि था। "हग डे" नहीं था, पर सदैव साथ का एक विश्वास था। "वेलेंटाइन डे" नहीं था किंतु जन्म जन्मांतर का साथ था।
प्रेम का भाव संसार का सबसे निश्छल और दूसरे को स्वयं से या फिर सर्वोपरि मानने का भाव है। प्रेम को न तो प्रदर्शन की ज़रूरत है, और न ही दिनों की, वे तो हृदय के अंतस तक घर करने वाले भाव हैं। आइए, प्रेम करें। इस पूर्ण सभ्यता से, इस विश्व से, इस खूबसूरत जीवन से और जीवन के हर पल से। क्योंकि...
यही है वो भाव जिसने दी हर पल एक नई आशा है !
प्रेम तो वह भाव है जिसकी न कोई परिभाषा है !!
सच्चा प्यार एक सकारात्मक सोच है जो आपको इस दुनिया की किसी भी चीज़ से जोड़ने की क्षमता रखती है।
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